शनिवार, 24 जुलाई 2010

जन्म शताब्दियों वाला वर्ष / कुमार विकल

आज जब मेरे देश के संभ्रां‍त लोग

गुरुओं महात्माओं की जन्म शताब्दियाँ मनाने के

धंधे में लग रहे हैं

मैं एक अदना आदमी की भूख का पर्व मनाने के लिए

अपने वक़्त की सबसे भद्दी गाली ईजाद करने में

व्यस्त हूँ.


वे लोग कितने ख़ुश हैं

जो अभी भी

ख़ूबसूरत लिपियों में

अपनी प्रेमिकाओं को पत्र लिखते हैं

या प्रियजनों को

नए वर्ष की शुभकामनाएँ भेजते हैं.

मेरे लिए भाषा का इस्तेमाल केवल

गालियाँ ईजाद करने के लिए

रह गया है.


गालियाँ उन संभ्रांत लोगों के लिए

जो ठीक दिशा में दौड़ते हुए

अदना आदमी का रास्ता रोकने के लिए

गुरुओं महात्माओं की अश्लील मूर्तियाँ गढ़ रहे हैं

किंतु भूख के पाँव इतने सशक्त होते हैं

मूर्तियाँ तोड़कर निकल जाते हैं

संभ्रांत लोगों के लिए गालियाँ छोड़ जाते हैं.

ज़ाहिर है गालियाँ गोलियाँ नहीं होतीं

फिर भी संभ्रांत लोग

इन गालियों से इतने पीड़ित हैं

कि अपनी सुरक्षा के लिए गोलियाँ जुटा रहे हैं.


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