मेरी पसन्द की कविता
अज़ा में बहते थे आँसू यहाँ, लहू तो नहींये कोई और जगह है ये लखनऊ तो नहीं
यहाँ तो चलती हैं छुरिया ज़ुबाँ से पहलेये मीर अनीस की, आतिश की गुफ़्तगू तो नहीं
चमक रहा है जो दामन पे दोनों फ़िरक़ों केबग़ौर देखो ये इस्लाम का लहू तो नहीं
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