अगर तू सूर्य होता
तो दिनभर आसमान में जलता रहता
अगर तू चाँद होता
तो पूर्णिमा से एकम तक
तुझे रोज कसाई के कत्ते से
कटना पड़ता
अगर तू तारा होता मेरे लाल
तो मुझसे कितना दूर होता
अच्छा हुआ
तू बद्रीनारायण हुआ.
मेरे सुग्गे तुम उड़ना
दग़ा है उड़ना
धोखा है उड़ना
कोई कहे-
छल है,कपट है उड़ना
पर मेरे सुग्गे,
तुम उड़ना
तुम उड़ना
पिंजड़ा हिला
सोने की कटोरी गिरा
अनार के दाने छींट
धूप में करके छेद
हवाओं की सिकड़ी बजा
मेरे सुग्गे, तुम उड़ना।
घोड़े से विनती
भले नदी में डूब जाओ घोड़े
भले पहाड़ी से कूद जाओ
धरती से ऊपह जाओ घोड़े
मत जाओ उनके घुड़साल में
मत जाओ
भले पहाड़ी से कूद जाओ
धरती से ऊपह जाओ घोड़े
मत जाओ उनके घुड़साल में
मत जाओ
आएँगे सुबह और कहेंगे
चलो ! रथ में जुतने चलो
चलो ! कुरूक्षेत्र में नया युद्ध लड़ो
चलो ! फिर से वाटरलू चलो
चलो ! रानी फूलमती चाहती है चूमना
तुम्हारा मुखड़ा
उसके चौसर की चाल चलो
वे आएँगे और कहेंगे
बुद्धराज बहुत देखने लगा है सपने
चलो ! रथ में जुतने चलो
चलो ! कुरूक्षेत्र में नया युद्ध लड़ो
चलो ! फिर से वाटरलू चलो
चलो ! रानी फूलमती चाहती है चूमना
तुम्हारा मुखड़ा
उसके चौसर की चाल चलो
वे आएँगे और कहेंगे
बुद्धराज बहुत देखने लगा है सपने
चलो, उसके सपनों पर खूनदार टाप
ले चलो !
चलो छातियों पर, चलो दिलों पर
चलो हजारों स्त्रियों को रौंदने चलो
नहीं तो अंत में कहेंगे--
घोड़े चलो ! कसाई के पाट पर चलो
ले चलो !
चलो छातियों पर, चलो दिलों पर
चलो हजारों स्त्रियों को रौंदने चलो
नहीं तो अंत में कहेंगे--
घोड़े चलो ! कसाई के पाट पर चलो
चितकबरे घोड़े के लिए कविता
सच बोलना चितकबरे
नाध से, चाबुक से, एड़ी से सच बोलना
सवारी से तो ज़रूर सच बोलना
जई से, खल्ली से सच-सच बोलना
नाध से, चाबुक से, एड़ी से सच बोलना
सवारी से तो ज़रूर सच बोलना
जई से, खल्ली से सच-सच बोलना
सच सुने कई दिन हो गए
सच देखे कई दिन हो गए।
सच देखे कई दिन हो गए।
दुलारी धिया
पी के घर जाओगी दुलारी धिया
लाल पालकी में बैठ चुक्के-मुक्के
सपनों का खूब सघन गुच्छा
भुइया में रखोगी पाँव
महावर रचे
धीरे-धीरे उतरोगी
लाल पालकी में बैठ चुक्के-मुक्के
सपनों का खूब सघन गुच्छा
भुइया में रखोगी पाँव
महावर रचे
धीरे-धीरे उतरोगी
सोने की थारी में जेवनार-दुलारी धिया
पोंछा बन
दिन-भर फर्श पर फिराई जाओगी
कछारी जाओगी पाट पर
सूती साड़ी की तरह
पी से नैना ना मिला पाओगी दुलारी धिया
पोंछा बन
दिन-भर फर्श पर फिराई जाओगी
कछारी जाओगी पाट पर
सूती साड़ी की तरह
पी से नैना ना मिला पाओगी दुलारी धिया
दुलारी धिया
छूट जाएँगी सखियाँ-सलेहरें
उड़ासकर अलगनी पर टाँग दी जाओगी
छूट जाएँगी सखियाँ-सलेहरें
उड़ासकर अलगनी पर टाँग दी जाओगी
पी घर में राज करोगी दुलारी धिया
दुलारी धिया, दिन-भर
धान उसीनने की हँड़िया बन
चौमुहे चूल्हे पर धीकोगी
अकेले में कहीं छुप के
मैके की याद में दो-चार धार फोड़ोगी
धान उसीनने की हँड़िया बन
चौमुहे चूल्हे पर धीकोगी
अकेले में कहीं छुप के
मैके की याद में दो-चार धार फोड़ोगी
सास-ससुर के पाँव धो पीना, दुलारी धिया
बाबा ने पूरब में ढूँढा
पश्चिम में ढूँढा
तब जाके मिला है तेरे जोग घर
ताले में कई-कई दिनों तक
बंद कर दी जाओगी, दुलारी धिया
बाबा ने पूरब में ढूँढा
पश्चिम में ढूँढा
तब जाके मिला है तेरे जोग घर
ताले में कई-कई दिनों तक
बंद कर दी जाओगी, दुलारी धिया
पूरे मौसम लकड़ी की ढेंकी बन
कूटोगी धान
कूटोगी धान
पुरईन के पात पर पली-बढ़ी दुलारी धिया
पी-घर से निकलोगी
दहेज की लाल रंथी पर
चित्तान लेटे
पी-घर से निकलोगी
दहेज की लाल रंथी पर
चित्तान लेटे
खोइछे में बाँध देगी
सास-सुहागिन, सवा सेर चावल
हरदी का टूसा
दूब
सास-सुहागिन, सवा सेर चावल
हरदी का टूसा
दूब
पी-घर को न बिसारना, दुलारी धिया।
आप उसे फ़ोन करें
आप उसे फ़ोन करें
तो कोई ज़रूरी नहीं कि
उसका फ़ोन खाली हो
आप उसे फ़ोन करें
तो कोई ज़रूरी नहीं कि
उसका फ़ोन खाली हो
हो सकता है उस वक़्त
वह चांद से बतिया रही हो
या तारों को फ़ोन लगा रही हो
वह थोड़ा धीरे बोल रही है
सम्भव है इस वक़्त वह किसी भौंरे से
कह रही हो अपना संदेश
हो सकता है वह लम्बी, बहुत लम्बी बातों में
मशगूल हो
हो सकता है
एक कटा पेड़
कटने पर होने वाले अपने
दुखों का उससे कर रहा हो बयान
बाणों से विंधा पखेरू
मरने के पूर्व उससे अपनी अंतिम
बात कह रहा हो
आप फ़ोन करें तो हो सकता है
एक मोहक गीत आपको थोड़ी देर
चकमा दे और थोड़ी देर बाद
नेटवर्क बिजी बताने लगे
यह भी हो सकता है एक छली
उसके मोबाइल पर फेंक रहा हो
छल का पासा
पर यह भी हो सकता है कि एक फूल
उससे काँटे से होने वाली
अपनी रोज़-रोज़ की लड़ाई के
बारे में बतिया रहा हो
या कि रामगिरि पर्वत से
चल कोई हवा
उसके फ़ोन से होकर आ रही हो।
या कि चातक, चकवा, चकोर उसे
बार-बार फ़ोन कर रहे हों
यह भी सम्भव है कि
कोई गृहणी रोटी बनाते वक़्त भी
उससे बातें करने का लोभ संवरण
न कर पाए
और आपके फ़ोन से उसका फ़ोन टकराए
आपका फ़ोन कट जाए
हो सकता है उसका फ़ोन
आपसे ज़्यादा
उस बच्चे के लिए ज़रूरी हो
जो उसके साथ हँस-हँस
मलय नील में बदल जाना चाहता हो
वह गा रही हो किसी साहिल का गीत
या हो सकता है कोई साहिल उसके
फ़ोन पर गा रहा हो
उसके लिए प्रेमगीत
या कि कोई पपीहा
कर रहा हो उसके फ़ोन पर
पीउ-पीउ
आप फ़ोन करें तो कोई ज़रूरी
नहीं कि
उसका फ़ोन खाली हो।
अपेक्षाएँ
वह चांद से बतिया रही हो
या तारों को फ़ोन लगा रही हो
वह थोड़ा धीरे बोल रही है
सम्भव है इस वक़्त वह किसी भौंरे से
कह रही हो अपना संदेश
हो सकता है वह लम्बी, बहुत लम्बी बातों में
मशगूल हो
हो सकता है
एक कटा पेड़
कटने पर होने वाले अपने
दुखों का उससे कर रहा हो बयान
बाणों से विंधा पखेरू
मरने के पूर्व उससे अपनी अंतिम
बात कह रहा हो
आप फ़ोन करें तो हो सकता है
एक मोहक गीत आपको थोड़ी देर
चकमा दे और थोड़ी देर बाद
नेटवर्क बिजी बताने लगे
यह भी हो सकता है एक छली
उसके मोबाइल पर फेंक रहा हो
छल का पासा
पर यह भी हो सकता है कि एक फूल
उससे काँटे से होने वाली
अपनी रोज़-रोज़ की लड़ाई के
बारे में बतिया रहा हो
या कि रामगिरि पर्वत से
चल कोई हवा
उसके फ़ोन से होकर आ रही हो।
या कि चातक, चकवा, चकोर उसे
बार-बार फ़ोन कर रहे हों
यह भी सम्भव है कि
कोई गृहणी रोटी बनाते वक़्त भी
उससे बातें करने का लोभ संवरण
न कर पाए
और आपके फ़ोन से उसका फ़ोन टकराए
आपका फ़ोन कट जाए
हो सकता है उसका फ़ोन
आपसे ज़्यादा
उस बच्चे के लिए ज़रूरी हो
जो उसके साथ हँस-हँस
मलय नील में बदल जाना चाहता हो
वह गा रही हो किसी साहिल का गीत
या हो सकता है कोई साहिल उसके
फ़ोन पर गा रहा हो
उसके लिए प्रेमगीत
या कि कोई पपीहा
कर रहा हो उसके फ़ोन पर
पीउ-पीउ
आप फ़ोन करें तो कोई ज़रूरी
नहीं कि
उसका फ़ोन खाली हो।
अपेक्षाएँ
कई अपेक्षाएँ थीं और कई बातें होनी थीं
एक रात के गर्भ में सुबह को होना था
एक औरत के पेट से दुनिया बदलने का भविष्य लिए
एक बालक को जन्म लेना था
एक चिड़िया में जगनी थी बड़ी उड़ान की महत्त्वाकांक्षाएँ
एक पत्थर में न झुकने वाले प्रतिरोध को और बलवती होना था
नदी के पानी को कुछ और जिद्दी होना था
खेतों में पकते अनाज को समाज के सबसे अन्तिम आदमी तक
पहुँचाने का सपना देखना था
पर कुछ नहीं हुआ
रात के गर्भ में सुबह के होने का भ्रम हुआ
औरत के पेट से वैसा बालक पैदा न हुआ
न जन्मी चिड़िया के भीतर वैसी महत्त्वाकांक्षाएँ
न पत्थर में उस कोटि का प्रतिरोध पनप सका
नदी के पानी में जिद्द तो कहीं दिखी ही नहीं
खेत में पकते अनाजों का
बीच में ही टूट गया सपना
अब क्या रह गया अपना ।
कौतुक-कथा
धूप चाहती थी, बारिश चाहती थी, चाहते थे ठेकेदार
कि यह बेशकीमती पेड़ सूख जाए
चोर, अपराधी, तस्कर, हत्यारे, मंत्री के रिश्तेदार
फिल्म ऐक्टर, पुरोहित, वे सब जो बेशकीमती लकड़ियों के
और इन लकड़ियों पर पागल हिरण के सीगों के व्यापार
में लगे थे
पेड़ अजब था,
पेड़ सूखता था और सूखते-सूखते फिर हरा हो जाता था
एक चिड़िया जैसे ही आकर बैठती थी
सूखा पेड़ हरा हो जाता था
उसमें आ जाते थे नर्म, कोमल नए-नए पत्ते
और जैसे ही चिड़िया जाती थी दिन दुनियादारी, दानापानी की तलाश में
फिर वह सूख जाता था
वे ख़ुश होते थे, ख़ुशी में गाने लगते थे उन्मादी गीत
और आरा ले उस वृक्ष को काटने आ जाते थे
वे समझ नहीं पा रहे थे, ऐसा क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है
एक दिन गहन शोध कर उनके दल के एक सिद्धांतकार ने गढ़ी
सैद्धांतिकी
कि पेड़ को अगर सुखाना है तो इस चिड़िया को मारना होगा
फिर क्या था
नियुक्त कर दिये गए अनंत शिकारी
कई तोप साज दिये गए
बिछा दिए गए अनेक जाल
वह आधी रात का समय था
दिन बुधवार था, जंगल के बीच एक चमकता बाज़ार था
पूर्णिमा की चांदनी में पेड़ से मिलन की अनंत कामना से आतुर
आती चिड़िया को कैद कर लिया गया
उसे अनेक तीरों से बींधा गया
उसे ठीहे पर रख भोथरे चाकू से बार-बार काटा गया
उसे तोप की नली में बांध कर तोप से दागा गया
सबने सुझाए तरह तरह के तरीके, तरह तरह के तरीकों
से उसे मारा गया
इतने के बाद भी जब सब उसे मिल मारने में हो गए असफल
तो उनमें से एक कोफ़्त में आ
उसे साबुत कच्चा निगल गया
चिड़िया उड़ गई, उड़ गई चिड़िया फुर्र से
उसके पेट से
उसे हतने के व्यवसाय में लगे लोग काफ़ी बाद में समझ पाए
कि यह चिड़िया सिर्फ चिड़िया न होकर
स्मृतियों का पुंज है
जिसे न तो हता जा सकता है
न मारा जा सकता है
न ही जलाया जा सकता है
कि यह बेशकीमती पेड़ सूख जाए
चोर, अपराधी, तस्कर, हत्यारे, मंत्री के रिश्तेदार
फिल्म ऐक्टर, पुरोहित, वे सब जो बेशकीमती लकड़ियों के
और इन लकड़ियों पर पागल हिरण के सीगों के व्यापार
में लगे थे
पेड़ अजब था,
पेड़ सूखता था और सूखते-सूखते फिर हरा हो जाता था
एक चिड़िया जैसे ही आकर बैठती थी
सूखा पेड़ हरा हो जाता था
उसमें आ जाते थे नर्म, कोमल नए-नए पत्ते
और जैसे ही चिड़िया जाती थी दिन दुनियादारी, दानापानी की तलाश में
फिर वह सूख जाता था
वे ख़ुश होते थे, ख़ुशी में गाने लगते थे उन्मादी गीत
और आरा ले उस वृक्ष को काटने आ जाते थे
वे समझ नहीं पा रहे थे, ऐसा क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है
एक दिन गहन शोध कर उनके दल के एक सिद्धांतकार ने गढ़ी
सैद्धांतिकी
कि पेड़ को अगर सुखाना है तो इस चिड़िया को मारना होगा
फिर क्या था
नियुक्त कर दिये गए अनंत शिकारी
कई तोप साज दिये गए
बिछा दिए गए अनेक जाल
वह आधी रात का समय था
दिन बुधवार था, जंगल के बीच एक चमकता बाज़ार था
पूर्णिमा की चांदनी में पेड़ से मिलन की अनंत कामना से आतुर
आती चिड़िया को कैद कर लिया गया
उसे अनेक तीरों से बींधा गया
उसे ठीहे पर रख भोथरे चाकू से बार-बार काटा गया
उसे तोप की नली में बांध कर तोप से दागा गया
सबने सुझाए तरह तरह के तरीके, तरह तरह के तरीकों
से उसे मारा गया
इतने के बाद भी जब सब उसे मिल मारने में हो गए असफल
तो उनमें से एक कोफ़्त में आ
उसे साबुत कच्चा निगल गया
चिड़िया उड़ गई, उड़ गई चिड़िया फुर्र से
उसके पेट से
उसे हतने के व्यवसाय में लगे लोग काफ़ी बाद में समझ पाए
कि यह चिड़िया सिर्फ चिड़िया न होकर
स्मृतियों का पुंज है
जिसे न तो हता जा सकता है
न मारा जा सकता है
न ही जलाया जा सकता है
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