बुधवार, 24 अगस्त 2011

अब अण्णा को उपवास तोड़ ही देना चाहिए



राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करती.. सही बात है.... और ये जिंदा कौमों के लिए एकदम सही बात है.  भारत तो 65 साल से  इंतजार में है.
अब अण्णा को उपवास तोड़ ही देना चाहिए... सारा भारत भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ा है, बिना हेल्मेट लगाए युवा         मोटर साइकिल रैली निकाल रहे हैं, वकील जो पूरा जोर लगा देते हैं मुक़दमा खींचने में,  अण्णा के समर्थन में रैली कर रहे हैं., व्यापारी है, अधिकारी हैं,  पार्टी लाइन को धता बता कर जनता के साँसत (शुद्ध रूप  साँसद ) हैं, पत्रकार हैं,  तो भई बिचारा लोकपाल किस काम का.  क्या करेंगे इसका. पूरी तरह से पूरा भारत पवित्र हो चुका है, अतः हे  अण्णा, आप को उपवास तोड़ ही देना चाहिए, वर्ना ये ngo वाले, जो ngo  को लोकपाल से बाहर रखना चाहते हैं, आपकी जान (और नाम भी)  न बचने देंगे.

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

पाश

सबसे ख़तरनाक
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना
मुट्ठियां भींचकर बस वक्‍़त निकाल लेना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता

सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है

सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्‍बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्‍याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में
मिर्चों की तरह नहीं पड़ता

सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्‍मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्‍म के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।



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 घास


मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे क्‍या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊंगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...
दो साल... दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।



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23 मार्च


उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग
किसी दृश्य की तरह बचे
ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाँकी की
देश सारा बच रहा बाक़ी

उसके चले जाने के बाद
उसकी शहादत के बाद
अपने भीतर खुलती खिडकी में
लोगों की आवाज़ें जम गयीं

उसकी शहादत के बाद
देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने
अपने चेहरे से आँसू नहीं, नाक पोंछी
गला साफ़ कर बोलने की
बोलते ही जाने की मशक की

उससे सम्बन्धित अपनी उस शहादत के बाद
लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए
कपड़े की महक की तरह बिखर गया

शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था

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मैं पूछता हूँ


मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक्त इसी का नाम है
कि घटनाएँ कुचलती चली जाए
मस्त हाथी की तरह
एक पुरे मनुष्य की चेतना?
कि हर प्रश्न
काम में लगे जिस्म की गलती ही हो?

क्यूं सुना दिया जाता है हर बार
पुराना चुटकुला
क्यूं कहा जाता है कि हम जिन्दा है
जरा सोचो -
कि हममे से कितनों का नाता है
ज़िदगी जैसी किसी वस्तु के साथ!

रब की वो कैसी रहमत है
जो कनक बोते फटे हुए हाथो-
और मंडी बिच के तख्तपोश पर फैली हुई मास की
उस पिलपली ढेरी पर,
एक ही समय होती है?

आखिर क्यों
बैलो की घंटियाँ
और पानी निकालते इँजन के शोर अंदर
घिरे हुए चेहरो पर जम गई है
एक चीखतीं ख़ामोशी?

कौन खा जाता है तल कर
मशीन मे चारा डाल रहे
कुतरे हुए अरमानों वाले डोलों की मछलियाँ?
क्यों गिड़गिड़ाता है
मेरे गाँव का किसान
एक मामूली से पुलिसए के आगे?
क्यों किसी दरड़े जाते आदमी के चीख़ने को
हर वार
कविता कह दिया जाता है?
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से


गुरुवार, 4 अगस्त 2011

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं -- क़तील शिफ़ाई

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं

बच निकलते हैं अगर आतिह-ए-सय्याद से हम
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफ़ाम से जल जाते हैं

ख़ुदनुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिन को जलना हो वो आराअम से जल जाते हैं

शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिये
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं

जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं

रब्ता बाहम पे हमें क्या न कहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैग़ाम से जल जाते हैं



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परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ
सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारों तुम तो सो जाओ

हँसो और हँसते-हँसते डूबते जाओ ख़लाओं में
हमें ये रात भारी है सितारों तुम तो सो जाओ

तुम्हें क्या आज भी कोई अगर मिलने नहीं आया
ये बाज़ी हमने हारी है सितारों तुम तो सो जाओ

कहे जाते हो रो-रो के हमारा हाल दुनिया से
ये कैसी राज़दारी है सितारों तुम तो सो जा

हमें तो आज की शब पौ फटे तक जागना होगा
यही क़िस्मत हमारी है सितारों तुम तो सो जाओ

हमें भी नींद आ जायेगी हम भी सो ही जायेंगे
अभी कुछ बेक़रारी है सितारों तुम तो सो जाओ

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वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे
रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर
ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे
ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी से किसी को मगर जुदा न करे
सुना है उसको मोहब्बत दुआयें देती है
जो दिल पे चोट तो खाये मगर गिला न करे
ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
"क़तील" जान से जाये पर इल्तजा न करे