नासिर क़ाज़मी




क़हर से देख न हर आन मुझे

आँख रखता है तो पहचान मुझे
यकबयक आके दिखा दो झमकी
क्यों फिराते हो परेशान मुझे
एक से एक नयी मंजिल में
लिए फिरता है तिरा ध्यान मुझे
सुन के आवाज-ए-गुल कुछ न सुना
बस उसी दिन से हुए कान मुझे
जी ठिकाने नहीं जब से ‘नासिर
शहर लगता है बयाबान मुझे 
------
अपनी धुन में रहता हूँमैं भी तेरे जैसा हूँ
ओ पिछली रुत के साथीअब के बरस मैं तन्हा हूँ 
तेरी गली में सारा दिनदुख के कंकर चुनता हूँ
मुझ से आँख मिलाये कौनमैं तेरा आईना हूँ
मेरा दिया जलाये कौनमैं तेरा ख़ाली कमरा हूँ
तू जीवन की भरी गलीमैं जंगल का रस्ता हूँ
अपनी लहर है अपना रोगदरिया हूँ और प्यासा हूँ
आती रुत मुझे रोयेगीजाती रुत का झोंका हूँ 
----------
आज तो बेसबब उदास है जी
इश्क़ होता तो कोई बात भी थी
जलता फिरता हूँ क्यूँ दो-पहरों में
जाने क्या चीज़ खो गई मेरी
वहीं फिरता हूँ मैं भी ख़ाक बसर
इस भरे शहर में है एक गली
छुपता फिरता है इश्क़ दुनिया से
फैलती जा रही है रुसवाई
हमनशीं क्या कहूँ कि वो क्या है
छोड़ ये बात नींद उड़ने लगी
आज तो वो भी कुछ ख़ामोश सा था
मैं ने भी उस से कोई बात न की
एक दम उस के हाथ चूम लिये
ये मुझे बैठे-बैठे क्या सूझी
तू जो इतना उदास है "नासिर"
तुझे क्या हो गया बता तो सही
--------
कितना काम करेंगे
अब आराम करेंगे
तेरे दिये हुए दुख
तेरे नाम करेंगे
अहल-ए-दर्द ही आख़िर
ख़ुशियाँ आम करेंगे
कौन बचा है जिसे वो
ज़ेर-ए-दाम करेंगे
नौकरी छोड़ के "नासिर"
अपना काम करेंगे
----
करता उसे बेकरार कुछ देर
होता अगर इख्तियार कुछ देर
क्या रोयें फ़रेब-ए-आसमाँ को
अपना नहीं ऐतबार कुछ देर
आँखों में कटी पहाड़ सी रात
सो जा दिल-ए-बेक़रार कुछ देर
ऐ शहर-ए-तरब को जाने वालों
करना मेरा इंतजार कुछ देर
बेकैफी-ए-रोज़-ओ-शब मुसलसल
सरमस्ती-ए-इंतज़ार कुछ देर
तकलीफ-ए-गम-ए-फिराक दायम
तकरीब-ए-विसाल-ए-यार कुछ देर
ये गुंचा-ओ-गुल हैं सब मुसाफिर
है काफिला-ए-बहार कुछ देर
दुनिया तो सदा रहेगी नासिर
हम लोग हैं यादगार कुछ देर
------
क़हर से देख न हर आन मुझे
आँख रखता है तो पहचान मुझे
यकबयक आके दिखा दो झमकी
क्यों फिराते हो परेशान मुझे
एक से एक नयी मंजिल में
लिए फिरता है तिरा ध्यान मुझे
सुन के आवाज-ए-गुल कुछ न सुना
बस उसी दिन से हुए कान मुझे
जी ठिकाने नहीं जब से ‘नासिर
शहर लगता है बयाबान मुझे 
------
अपनी धुन में रहता हूँमैं भी तेरे जैसा हूँ
ओ पिछली रुत के साथीअब के बरस मैं तन्हा हूँ 
तेरी गली में सारा दिनदुख के कंकर चुनता हूँ
मुझ से आँख मिलाये कौनमैं तेरा आईना हूँ
मेरा दिया जलाये कौनमैं तेरा ख़ाली कमरा हूँ
तू जीवन की भरी गलीमैं जंगल का रस्ता हूँ
अपनी लहर है अपना रोगदरिया हूँ और प्यासा हूँ
आती रुत मुझे रोयेगीजाती रुत का झोंका हूँ 
----------
आज तो बेसबब उदास है जी
इश्क़ होता तो कोई बात भी थी
जलता फिरता हूँ क्यूँ दो-पहरों में
जाने क्या चीज़ खो गई मेरी
वहीं फिरता हूँ मैं भी ख़ाक बसर
इस भरे शहर में है एक गली
छुपता फिरता है इश्क़ दुनिया से
फैलती जा रही है रुसवाई
हमनशीं क्या कहूँ कि वो क्या है
छोड़ ये बात नींद उड़ने लगी
आज तो वो भी कुछ ख़ामोश सा था
मैं ने भी उस से कोई बात न की
एक दम उस के हाथ चूम लिये
ये मुझे बैठे-बैठे क्या सूझी
तू जो इतना उदास है "नासिर"
तुझे क्या हो गया बता तो सही
--------
कितना काम करेंगे
अब आराम करेंगे
तेरे दिये हुए दुख
तेरे नाम करेंगे
अहल-ए-दर्द ही आख़िर
ख़ुशियाँ आम करेंगे
कौन बचा है जिसे वो
ज़ेर-ए-दाम करेंगे
नौकरी छोड़ के "नासिर"
अपना काम करेंगे
----
करता उसे बेकरार कुछ देर
होता अगर इख्तियार कुछ देर
क्या रोयें फ़रेब-ए-आसमाँ को
अपना नहीं ऐतबार कुछ देर
आँखों में कटी पहाड़ सी रात
सो जा दिल-ए-बेक़रार कुछ देर
ऐ शहर-ए-तरब को जाने वालों
करना मेरा इंतजार कुछ देर
बेकैफी-ए-रोज़-ओ-शब मुसलसल
सरमस्ती-ए-इंतज़ार कुछ देर
तकलीफ-ए-गम-ए-फिराक दायम
तकरीब-ए-विसाल-ए-यार कुछ देर
ये गुंचा-ओ-गुल हैं सब मुसाफिर
है काफिला-ए-बहार कुछ देर
दुनिया तो सदा रहेगी नासिर
हम लोग हैं यादगार कुछ देर
------------
किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे 
गुज़र गई जरस-ए-गुल उदास कर के मुझे
 
मैं सो रहा था किसी याद के शबिस्ताँ में 
जगा के छोड़ गये क़ाफ़िले सहर के मुझे 
मैं रो रहा था मुक़द्दर की सख़्त राहों में 
उड़ा के ले गया जादू तेरी नज़र का मुझे 
मैं तेरी दर्द की तुग़ियानियों में डूब गया 
पुकारते रहे तारे उभर-उभर के मुझे 
तेरे फ़िराक़ की रातें कभी न भूलेंगी 
मज़े मिले इन्हीं रातों में उम्र भर के मुझे 
ज़रा सी देर ठहरने दे ऐ ग़म-ए-दुनिया 
बुला रहा है कोई बाम से उतर के मुझे 
फिर आज आई थी इक मौज-ए-हवा-ए-तरब 
सुना गई है फ़साने इधर-उधर के मुझे
------
 किसे देखें कहाँ देखा न जाये
वो देखा है जहाँ देखा न जाये

मेरी बरबादियों पर रोने वाले
तुझे महव-ए-फुगाँ देखा न जाये

सफ़र है और गुरबत का सफ़र है
गम-ए-सद-कारवाँ देखा न जाये

कहीं आग और कहीं लाशों के अंबार
बस ऐ दौर-ए-ज़मीँ देखा न जाये

दर-ओ-दीवार वीराँ
शमा मद्धम
शब-ओ-गम का सामाँ देखा न जाये

पुरानी सुहब्बतें याद आती है
चरागों का धुआँ देखा न जाये

भरी बरसात खाली जा रही है
सराबर-ए-रवाँ देखा न जाये

कहीं तुम और कहीं हम
क्या गज़ब है
फिराक-ए-जिस्म-ओ-जाँ देखा न जाये

वही जो हासिल-ए-हस्ती है नासिर
उसी को मेहरबाँ देखा न जाये
----- कुछ तो एहसास-ए-ज़ियाँ था पहले
दिल का ये हाल कहाँ था पहले

अब तो मन्ज़िल भी है ख़ुद गर्म-ए-सफ़र
हर क़दम संग-ए-निशाँ था पहले

सफ़र-ए-शौक़ के फ़रसंग न पूछ
वक़्त बेक़ैद-ए-मकां था पहले

ये अलग बात कि ग़म रास है अब
इस में अंदेशा-ए-जाँ था पहले

यूँ न घबराये हुये फिरते थे
दिल अजब कुंज-ए-अमाँ था पहले

अब भी तू पास नहीं है लेकिन
इस क़दर दूर कहाँ था पहले

डेरे डाले हैं बगुलों ने जहाँ
उस तरफ़ चश्म-ए-रवाँ था पहले

अब वो दरिया न बस्ती न वो लोग
क्या ख़बर कौन कहाँ था पहले

हर ख़राबा ये सदा देता है
मैं भी आबाद मकाँ था पहले

क्या से क्या हो गई दुनिया प्यारे
तू वहीं पर है जहाँ था पहले

हम ने आबाद किया मुल्क-ए-सुख़न
कैसा सुनसान समाँ था पहले

हम ने बख़्शी है ख़मोशी को ज़ुबाँ
दर्द मजबूर-ए-फ़ुग़ाँ था पहले

हम ने रोशन किया मामूर-ए-ग़म
वरना हर सिम्त धुआँ था पहले

ग़म ने फिर दिल को जगाया "नासिर"
ख़ानाबरबाद कहाँ था पहले
------
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें
आये हैं इस गली में तो पत्थर ही ले चलें 
यूँ किस तरह कटेगा कड़ी धूप का सफ़र
सर पर ख़याल-ए-यार की चादर ही ले चलें 
रंज-ए-सफ़र की कोई निशानी तो पास हो
थोड़ी सी ख़ाक-ए-कूचा-ए-दिलबर ही ले चलें 
ये कह के छेड़ती है हमें दिलगिरफ़्तगी
घबरा गये हैं आप तो बाहर ही ले चलें 
इस शहर-ए-बेचराग़ में जायेगी तू कहाँ
आ ऐ शब-ए-फ़िराक़ तुझे घर ही ले चलें 
----------
गए दिनों का सुराग़ लेकर किधर से आया किधर गया वो 
अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो
 

ख़ुशी की रुत हो कि ग़म का मौसम नज़र उसे ढूँढती है हर दम
 
वो बू-ए-गुल था कि नग़मा-ए-जान मेरे तो दिल में उतर गया वो
 

वो मयकदे को जगानेवाला वो रात की नींद उड़ानेवाला
 
न जाने क्या उस के जी में आई कि शाम होते ही घर गया वो
 

कुछ अब संभलने लगी है जाँ भी बदल चला रंग-ए-आसमां भी
 
जो रात भारी थी टल गई है जो दिन कड़ा था गुज़र गया वो
 

शिकस्तपा राह में खड़ा हूँ गए दिनों को बुला रहा हूँ
 
जो क़ाफ़िला मेरा हमसफ़र था मिस्ल-ए-गर्द-ए-सफ़र गया वो
 

बस एक मंज़िल है बुलहवस की हज़ार रास्ते हैं अहल-ए-दिल के
 
ये ही तो है फ़र्क़ मुझ में उस में गुज़र गया मैं ठहर गया वो
 

वो जिस के शाने पे हाथ रख कर सफ़र किया तूने मंज़िलों का
 
तेरी गली से न जाने क्यूँ आज सर झुकाये गुज़र गया वो
 

वो हिज्र की रात का सितारा वो हमनफ़स हमसुख़न हमारा
 
सदा रहे उस का नाम प्यारा सुना है कल रात मर गया वो
 

बस एक मोती सी छब दिखाकर बस एक मीठी सी धुन सुना कर
 
सितारा-ए-शाम बन के आया बरंग-ए-ख़याल-ए-सहर गया वो
 

न अब वो यादों का चढ़ता दरिया न फ़ुर्सतों की उदास बरखा
 
यूँ ही ज़रा सी कसक है दिल में जो ज़ख़्म गहरा था भर गया वो
 

वो रात का बेनवा मुसाफ़िर वो तेरा शायर वो तेरा "नासिर"
तेरी गली तक तो हम ने देखा फिर न जाने किधर गया वो
------
ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा 
सुख़नकदा मेरी तर्ज़-ए-सुख़न को तरसेगा
 

नये प्याले सही तेरे दौर में साक़ी
 
ये दौर मेरी शराब-ए-कोहन को तरसेगा
 

मुझे तो ख़ैर वतन छोड़ के अमन न मिली
वतन भी मुझ से ग़रीब-उल-वतन को तरसेगा
 

उन्हीं के दम से फ़रोज़ाँ हैं मिल्लतों के चराग़
 
ज़माना सोहबत-ए-अरबाब-ए-फ़न को तरसेगा
 

बदल सको तो बदल दो ये बाग़बाँ वरना
 
ये बाग़ साया-ए-सर्द-ओ-समन को तरसेगा
 

हवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना एक दिन
 
ज़मीं पानी को सूरज किरन को तरसेगा
-----
तन्हा इश्क के ख़्वाब न बुन
कभी हमारी बात भी सुन
थोड़ा ग़म भी उठा प्यारे
फूल चुने हैं ख़ार भी चुन
सुख़ की नींदें सोने वाले
मरहूमी के राग भी सुन
तन्हाई में तेरी याद
जैसे एक सुरीली धुन
जैसे चाँद की ठंडी लौ
जैसे किरणों कि कन मन
जैसे जल-परियों का ताज
जैसे पायल की छन छन
----------
तू है या तेरा साया है
भेस जुदाई ने बदला है
दिल की हवेली पर मुद्दत से
ख़ामोशी का क़ुफ़्ल पड़ा है
चीख़ रहे हैं ख़ाली कमरे
शाम से कितनी तेज़ हवा है
दरवाज़े सर फोड़ रहे हैं
कौन इस घर को छोड़ गया है
हिचकी थमती ही नहीं 'नासिर'
आज किसी ने याद किया है
---------
तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं
मगर ये लोग पागल हो गये हैं

बहारें लेके आये थे जहाँ तुम
वो घर सुनसान जंगल हो गये हैं

यहाँ तक बढ़ गये आलाम-ए-हस्ती
कि दिल के हौसले शल हो गये हैं

कहाँ तक ताब लाये नातवाँ दिल
कि सदमे अब मुसलसल हो गये हैं

निगाह-ए-यास को नींद आ रही है
मुसर्दा पुरअश्क बोझल हो गये हैं

उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना
यहाँ जो हादसे कल हो गये हैं

जिन्हें हम देख कर जीते थे "नासिर"
वो लोग आँखों से ओझल हो गये हैं
-----
दयार-ए-दिल की रात में चिराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया 
ये सुबह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देख़ता हूँ मैं कहाँ चला गया 
पुकारती हैं फ़ुर्सतें कहाँ गई वो सोहबतें
ज़मीं निगल गई उन्हें या आसमान खा गया 
वो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई
वो छोटी-छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया 
ये किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई
वो लहर किस तरफ़ गई ये मैं कहाँ समा गया 
गये दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक
उठो अमलकशो उठो कि आफ़ताब सर पे आ गया 
----------
दिल धड़कने का सबब याद आया 
वो तेरी याद थी अब याद आया
 
आज मुश्किल था सम्भलना ऐ दोस्त 
तू मुसीबत में अजब याद आया 
दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से 
फिर तेरा वादा-ए-शब याद आया 
तेरा भूला हुआ पैमान-ए-वफ़ा 
मर रहेंगे अगर अब याद आया 
फिर कई लोग नज़र से गुज़रे 
फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया 
हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन 
जब वो रुख़सत हुए तब याद आया
बैठ कर साया-ए-गुल में "नासिर"
हम बहुत रोये वो जब याद आया
-----
दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और ये चोट भी नई है अभी
भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी
तू शरीक-ए-सुख़न नहीं है तो क्या
हम-सुख़न तेरी ख़ामोशी है अभी
याद के बे-निशाँ जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी
शहर की बेचिराग़ गलियों में
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी
सो गये लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी
तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर में रात जागती है अभी
वक़्त अच्छा भी आयेगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी
--
नीयत-ए-शौक़ भर न जाये कहीं
तू भी दिल से उतर न जाये कहीं

आज देखा है तुझे देर के बाद
आज का दिन गुज़र न जाये कहीं

न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाये कहीं

आरज़ू है के तू यहाँ आये
और फिर उम्र भर न जाये कहीं

जी जलाता हूँ और ये सोचता हूँ
रायेगाँ ये हुनर न जाये कहीं

आओ कुछ देर रो ही लें "नासिर"
फिर ये दरिया उतर न जाये कहीं
-----
नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिये
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये

जिस धूप की दिल को ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई
इन जलती बुझती गलियों में अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये

वो शहर में था तो उस के लिये औरों से मिलना पड़ता था
अब ऐसे-वैसे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिये

अब शहर में इस का बादल ही नहीं कोई वैसा जान-ए-ग़ज़ल ही नहीं
ऐवान-ए-ग़ज़ल में लफ़्ज़ों के गुलदान सजाऊँ किस के लिये

मुद्दत से कोई आया न गया सुनसान पड़ी है घर की फ़ज़ा
इन ख़ाली कमरों में "नासिर" अब शम्मा जलाऊँ किस के लिये
-----
"नासिर" क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
दीवाना है दीवाने के मुँह न लगो तो बेहतर है

कल जो था वो आज नहीं जो आज है कल मिट जायेगा
रूखी-सूखी जो मिल जाये शुक्र करो तो बेहतर है

कल ये ताब-ओ-तवाँ न रहेगी ठंडा हो जायेगा लहू
नाम-ए-ख़ुदा हो जवाँ अभी कुछ कर गुज़रो तो बेहतर है

क्या जाने क्या रुत बदले हालात का कोई ठीक नहीं
अब के सफ़र में तुम भी हमारे साथ चलो तो बेहतर है

कपड़े बदल कर बाल बना कर कहाँ चले हो किस के लिये
रात बहुत काली है "नासिर" घर में रहो तो बेहतर है
------
फिर सावन रुत की पवन चली तुम याद आये
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी तुम याद आये
फिर कुँजें बोलीं घास के हरे समन्दर में
रुत आई पीले फूलों की तुम याद आये
फिर कागा बोला घर के सूने आँगन में
फिर अम्रत रस की बूँद पड़ी तुम याद आये
पहले तो मैं चीख़ के रोया फिर हँसने लगा
बादल गरजा बिजली चमकी तुम याद आये
दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आये
-------
मुसलसल बेकली दिल को रही है
मगर जीने की सूरत तो रही है
मैं क्यूँ फिरता हूँ तन्हा मारा-मारा
ये बस्ती चैन से क्यों सो रही है
चल दिल से उम्मीदों के मुसाफ़िर
ये नगरी आज ख़ाली हो रही है
न समझो तुम इसे शोर-ए-बहाराँ
ख़िज़ाँ पत्तों में छुप के रो रही है
हमारे घर की दीवारों पे "नासिर"
उदासी बाल खोले सो रही है
--------
वो दिल नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं
मेरा इलाज मेरे चारागर के पास नहीं
तड़प रहे हैं ज़बाँ पर कई सवाल मगर
मेरे लिये कोई शयान-ए-इल्तमास नहीं 
तेरे उजालों में भी दिल काँप-काँप उठता है
मेरे मिज़ाज को आसूदगी भी रास नहीं 
कभी-कभी जो तेरे क़ुर्ब में गुज़ारे थे
अब उन दिनों का तसव्वुर भी मेरे पास नहीं 
गुज़र रहे हैं अजब मर्हलों से दीदा-ओ-दिल
सहर की आस तो है ज़िन्दगी की आस नहीं 
मुझे ये डर है तेरी आरज़ू न मिट जाये
बहुत दिनों से तबीयत मेरी उदास नहीं 
---------
वो साहिलों पे गाने वाले क्या हुए
वो कश्तियाँ जलाने वाले क्या हुए
वो सुबह आते-आते रह गई कहाँ
जो क़ाफ़िले थे आने वाले क्या हुए
मैं जिन की राह देखता हूँ रात भर
वो रौशनी दिखाने वाले क्या हुए
ये कौन लोग हैं मेरे इधर-उधर
वो दोस्ती निभाने वाले क्या हुए
इमारतें तो जल के राख हो गईं
इमारतें बनाने वाले क्या हुए
ये आप-हम तो बोझ हैं ज़मीन के
ज़मीं का बोझ उठाने वाले क्या हुए
------
होती है तेरे नाम से वहशत कभी-कभी
बरहम  हुई है यूँ भी तबीयत कभी-कभी

ऐ दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब 
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी 

तेरे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-ए-आफ़रीन 
दिल बन गया है दोस्त की ख़िल्वत कभी-कभी 

दिल को कहाँ नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब 
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी 

जोश-ए-जुनूँ  में दर्द की तुग़यानियों] के साथ 
अश्कों में ढल गई तेरी सूरत कभी-कभी

तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन न था 
गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी-कभी 

कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था 
यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त कभी-कभी 

ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी-कभी




क़हर से देख न हर आन मुझे

आँख रखता है तो पहचान मुझे
यकबयक आके दिखा दो झमकी
क्यों फिराते हो परेशान मुझे
एक से एक नयी मंजिल में
लिए फिरता है तिरा ध्यान मुझे
सुन के आवाज-ए-गुल कुछ न सुना
बस उसी दिन से हुए कान मुझे
जी ठिकाने नहीं जब से ‘नासिर
शहर लगता है बयाबान मुझे 
------
अपनी धुन में रहता हूँमैं भी तेरे जैसा हूँ
ओ पिछली रुत के साथीअब के बरस मैं तन्हा हूँ 
तेरी गली में सारा दिनदुख के कंकर चुनता हूँ
मुझ से आँख मिलाये कौनमैं तेरा आईना हूँ
मेरा दिया जलाये कौनमैं तेरा ख़ाली कमरा हूँ
तू जीवन की भरी गलीमैं जंगल का रस्ता हूँ
अपनी लहर है अपना रोगदरिया हूँ और प्यासा हूँ
आती रुत मुझे रोयेगीजाती रुत का झोंका हूँ 
----------
आज तो बेसबब उदास है जी
इश्क़ होता तो कोई बात भी थी
जलता फिरता हूँ क्यूँ दो-पहरों में
जाने क्या चीज़ खो गई मेरी
वहीं फिरता हूँ मैं भी ख़ाक बसर
इस भरे शहर में है एक गली
छुपता फिरता है इश्क़ दुनिया से
फैलती जा रही है रुसवाई
हमनशीं क्या कहूँ कि वो क्या है
छोड़ ये बात नींद उड़ने लगी
आज तो वो भी कुछ ख़ामोश सा था
मैं ने भी उस से कोई बात न की
एक दम उस के हाथ चूम लिये
ये मुझे बैठे-बैठे क्या सूझी
तू जो इतना उदास है "नासिर"
तुझे क्या हो गया बता तो सही
--------
कितना काम करेंगे
अब आराम करेंगे
तेरे दिये हुए दुख
तेरे नाम करेंगे
अहल-ए-दर्द ही आख़िर
ख़ुशियाँ आम करेंगे
कौन बचा है जिसे वो
ज़ेर-ए-दाम करेंगे
नौकरी छोड़ के "नासिर"
अपना काम करेंगे
----
करता उसे बेकरार कुछ देर
होता अगर इख्तियार कुछ देर
क्या रोयें फ़रेब-ए-आसमाँ को
अपना नहीं ऐतबार कुछ देर
आँखों में कटी पहाड़ सी रात
सो जा दिल-ए-बेक़रार कुछ देर
ऐ शहर-ए-तरब को जाने वालों
करना मेरा इंतजार कुछ देर
बेकैफी-ए-रोज़-ओ-शब मुसलसल
सरमस्ती-ए-इंतज़ार कुछ देर
तकलीफ-ए-गम-ए-फिराक दायम
तकरीब-ए-विसाल-ए-यार कुछ देर
ये गुंचा-ओ-गुल हैं सब मुसाफिर
है काफिला-ए-बहार कुछ देर
दुनिया तो सदा रहेगी नासिर
हम लोग हैं यादगार कुछ देर
------
क़हर से देख न हर आन मुझे
आँख रखता है तो पहचान मुझे
यकबयक आके दिखा दो झमकी
क्यों फिराते हो परेशान मुझे
एक से एक नयी मंजिल में
लिए फिरता है तिरा ध्यान मुझे
सुन के आवाज-ए-गुल कुछ न सुना
बस उसी दिन से हुए कान मुझे
जी ठिकाने नहीं जब से ‘नासिर
शहर लगता है बयाबान मुझे 
------
अपनी धुन में रहता हूँमैं भी तेरे जैसा हूँ
ओ पिछली रुत के साथीअब के बरस मैं तन्हा हूँ 
तेरी गली में सारा दिनदुख के कंकर चुनता हूँ
मुझ से आँख मिलाये कौनमैं तेरा आईना हूँ
मेरा दिया जलाये कौनमैं तेरा ख़ाली कमरा हूँ
तू जीवन की भरी गलीमैं जंगल का रस्ता हूँ
अपनी लहर है अपना रोगदरिया हूँ और प्यासा हूँ
आती रुत मुझे रोयेगीजाती रुत का झोंका हूँ 
----------
आज तो बेसबब उदास है जी
इश्क़ होता तो कोई बात भी थी
जलता फिरता हूँ क्यूँ दो-पहरों में
जाने क्या चीज़ खो गई मेरी
वहीं फिरता हूँ मैं भी ख़ाक बसर
इस भरे शहर में है एक गली
छुपता फिरता है इश्क़ दुनिया से
फैलती जा रही है रुसवाई
हमनशीं क्या कहूँ कि वो क्या है
छोड़ ये बात नींद उड़ने लगी
आज तो वो भी कुछ ख़ामोश सा था
मैं ने भी उस से कोई बात न की
एक दम उस के हाथ चूम लिये
ये मुझे बैठे-बैठे क्या सूझी
तू जो इतना उदास है "नासिर"
तुझे क्या हो गया बता तो सही
--------
कितना काम करेंगे
अब आराम करेंगे
तेरे दिये हुए दुख
तेरे नाम करेंगे
अहल-ए-दर्द ही आख़िर
ख़ुशियाँ आम करेंगे
कौन बचा है जिसे वो
ज़ेर-ए-दाम करेंगे
नौकरी छोड़ के "नासिर"
अपना काम करेंगे
----
करता उसे बेकरार कुछ देर
होता अगर इख्तियार कुछ देर
क्या रोयें फ़रेब-ए-आसमाँ को
अपना नहीं ऐतबार कुछ देर
आँखों में कटी पहाड़ सी रात
सो जा दिल-ए-बेक़रार कुछ देर
ऐ शहर-ए-तरब को जाने वालों
करना मेरा इंतजार कुछ देर
बेकैफी-ए-रोज़-ओ-शब मुसलसल
सरमस्ती-ए-इंतज़ार कुछ देर
तकलीफ-ए-गम-ए-फिराक दायम
तकरीब-ए-विसाल-ए-यार कुछ देर
ये गुंचा-ओ-गुल हैं सब मुसाफिर
है काफिला-ए-बहार कुछ देर
दुनिया तो सदा रहेगी नासिर
हम लोग हैं यादगार कुछ देर
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किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे 
गुज़र गई जरस-ए-गुल उदास कर के मुझे
 
मैं सो रहा था किसी याद के शबिस्ताँ में 
जगा के छोड़ गये क़ाफ़िले सहर के मुझे 
मैं रो रहा था मुक़द्दर की सख़्त राहों में 
उड़ा के ले गया जादू तेरी नज़र का मुझे 
मैं तेरी दर्द की तुग़ियानियों में डूब गया 
पुकारते रहे तारे उभर-उभर के मुझे 
तेरे फ़िराक़ की रातें कभी न भूलेंगी 
मज़े मिले इन्हीं रातों में उम्र भर के मुझे 
ज़रा सी देर ठहरने दे ऐ ग़म-ए-दुनिया 
बुला रहा है कोई बाम से उतर के मुझे 
फिर आज आई थी इक मौज-ए-हवा-ए-तरब 
सुना गई है फ़साने इधर-उधर के मुझे
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 किसे देखें कहाँ देखा न जाये
वो देखा है जहाँ देखा न जाये

मेरी बरबादियों पर रोने वाले
तुझे महव-ए-फुगाँ देखा न जाये

सफ़र है और गुरबत का सफ़र है
गम-ए-सद-कारवाँ देखा न जाये

कहीं आग और कहीं लाशों के अंबार
बस ऐ दौर-ए-ज़मीँ देखा न जाये

दर-ओ-दीवार वीराँ
शमा मद्धम
शब-ओ-गम का सामाँ देखा न जाये

पुरानी सुहब्बतें याद आती है
चरागों का धुआँ देखा न जाये

भरी बरसात खाली जा रही है
सराबर-ए-रवाँ देखा न जाये

कहीं तुम और कहीं हम
क्या गज़ब है
फिराक-ए-जिस्म-ओ-जाँ देखा न जाये

वही जो हासिल-ए-हस्ती है नासिर
उसी को मेहरबाँ देखा न जाये
----- कुछ तो एहसास-ए-ज़ियाँ था पहले
दिल का ये हाल कहाँ था पहले

अब तो मन्ज़िल भी है ख़ुद गर्म-ए-सफ़र
हर क़दम संग-ए-निशाँ था पहले

सफ़र-ए-शौक़ के फ़रसंग न पूछ
वक़्त बेक़ैद-ए-मकां था पहले

ये अलग बात कि ग़म रास है अब
इस में अंदेशा-ए-जाँ था पहले

यूँ न घबराये हुये फिरते थे
दिल अजब कुंज-ए-अमाँ था पहले

अब भी तू पास नहीं है लेकिन
इस क़दर दूर कहाँ था पहले

डेरे डाले हैं बगुलों ने जहाँ
उस तरफ़ चश्म-ए-रवाँ था पहले

अब वो दरिया न बस्ती न वो लोग
क्या ख़बर कौन कहाँ था पहले

हर ख़राबा ये सदा देता है
मैं भी आबाद मकाँ था पहले

क्या से क्या हो गई दुनिया प्यारे
तू वहीं पर है जहाँ था पहले

हम ने आबाद किया मुल्क-ए-सुख़न
कैसा सुनसान समाँ था पहले

हम ने बख़्शी है ख़मोशी को ज़ुबाँ
दर्द मजबूर-ए-फ़ुग़ाँ था पहले

हम ने रोशन किया मामूर-ए-ग़म
वरना हर सिम्त धुआँ था पहले

ग़म ने फिर दिल को जगाया "नासिर"
ख़ानाबरबाद कहाँ था पहले
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कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें
आये हैं इस गली में तो पत्थर ही ले चलें 
यूँ किस तरह कटेगा कड़ी धूप का सफ़र
सर पर ख़याल-ए-यार की चादर ही ले चलें 
रंज-ए-सफ़र की कोई निशानी तो पास हो
थोड़ी सी ख़ाक-ए-कूचा-ए-दिलबर ही ले चलें 
ये कह के छेड़ती है हमें दिलगिरफ़्तगी
घबरा गये हैं आप तो बाहर ही ले चलें 
इस शहर-ए-बेचराग़ में जायेगी तू कहाँ
आ ऐ शब-ए-फ़िराक़ तुझे घर ही ले चलें 
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गए दिनों का सुराग़ लेकर किधर से आया किधर गया वो 
अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो
 

ख़ुशी की रुत हो कि ग़म का मौसम नज़र उसे ढूँढती है हर दम
 
वो बू-ए-गुल था कि नग़मा-ए-जान मेरे तो दिल में उतर गया वो
 

वो मयकदे को जगानेवाला वो रात की नींद उड़ानेवाला
 
न जाने क्या उस के जी में आई कि शाम होते ही घर गया वो
 

कुछ अब संभलने लगी है जाँ भी बदल चला रंग-ए-आसमां भी
 
जो रात भारी थी टल गई है जो दिन कड़ा था गुज़र गया वो
 

शिकस्तपा राह में खड़ा हूँ गए दिनों को बुला रहा हूँ
 
जो क़ाफ़िला मेरा हमसफ़र था मिस्ल-ए-गर्द-ए-सफ़र गया वो
 

बस एक मंज़िल है बुलहवस की हज़ार रास्ते हैं अहल-ए-दिल के
 
ये ही तो है फ़र्क़ मुझ में उस में गुज़र गया मैं ठहर गया वो
 

वो जिस के शाने पे हाथ रख कर सफ़र किया तूने मंज़िलों का
 
तेरी गली से न जाने क्यूँ आज सर झुकाये गुज़र गया वो
 

वो हिज्र की रात का सितारा वो हमनफ़स हमसुख़न हमारा
 
सदा रहे उस का नाम प्यारा सुना है कल रात मर गया वो
 

बस एक मोती सी छब दिखाकर बस एक मीठी सी धुन सुना कर
 
सितारा-ए-शाम बन के आया बरंग-ए-ख़याल-ए-सहर गया वो
 

न अब वो यादों का चढ़ता दरिया न फ़ुर्सतों की उदास बरखा
 
यूँ ही ज़रा सी कसक है दिल में जो ज़ख़्म गहरा था भर गया वो
 

वो रात का बेनवा मुसाफ़िर वो तेरा शायर वो तेरा "नासिर"
तेरी गली तक तो हम ने देखा फिर न जाने किधर गया वो
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ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा 
सुख़नकदा मेरी तर्ज़-ए-सुख़न को तरसेगा
 

नये प्याले सही तेरे दौर में साक़ी
 
ये दौर मेरी शराब-ए-कोहन को तरसेगा
 

मुझे तो ख़ैर वतन छोड़ के अमन न मिली
वतन भी मुझ से ग़रीब-उल-वतन को तरसेगा
 

उन्हीं के दम से फ़रोज़ाँ हैं मिल्लतों के चराग़
 
ज़माना सोहबत-ए-अरबाब-ए-फ़न को तरसेगा
 

बदल सको तो बदल दो ये बाग़बाँ वरना
 
ये बाग़ साया-ए-सर्द-ओ-समन को तरसेगा
 

हवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना एक दिन
 
ज़मीं पानी को सूरज किरन को तरसेगा
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तन्हा इश्क के ख़्वाब न बुन
कभी हमारी बात भी सुन
थोड़ा ग़म भी उठा प्यारे
फूल चुने हैं ख़ार भी चुन
सुख़ की नींदें सोने वाले
मरहूमी के राग भी सुन
तन्हाई में तेरी याद
जैसे एक सुरीली धुन
जैसे चाँद की ठंडी लौ
जैसे किरणों कि कन मन
जैसे जल-परियों का ताज
जैसे पायल की छन छन
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तू है या तेरा साया है
भेस जुदाई ने बदला है
दिल की हवेली पर मुद्दत से
ख़ामोशी का क़ुफ़्ल पड़ा है
चीख़ रहे हैं ख़ाली कमरे
शाम से कितनी तेज़ हवा है
दरवाज़े सर फोड़ रहे हैं
कौन इस घर को छोड़ गया है
हिचकी थमती ही नहीं 'नासिर'
आज किसी ने याद किया है
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तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं
मगर ये लोग पागल हो गये हैं

बहारें लेके आये थे जहाँ तुम
वो घर सुनसान जंगल हो गये हैं

यहाँ तक बढ़ गये आलाम-ए-हस्ती
कि दिल के हौसले शल हो गये हैं

कहाँ तक ताब लाये नातवाँ दिल
कि सदमे अब मुसलसल हो गये हैं

निगाह-ए-यास को नींद आ रही है
मुसर्दा पुरअश्क बोझल हो गये हैं

उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना
यहाँ जो हादसे कल हो गये हैं

जिन्हें हम देख कर जीते थे "नासिर"
वो लोग आँखों से ओझल हो गये हैं
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दयार-ए-दिल की रात में चिराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया 
ये सुबह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देख़ता हूँ मैं कहाँ चला गया 
पुकारती हैं फ़ुर्सतें कहाँ गई वो सोहबतें
ज़मीं निगल गई उन्हें या आसमान खा गया 
वो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई
वो छोटी-छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया 
ये किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई
वो लहर किस तरफ़ गई ये मैं कहाँ समा गया 
गये दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक
उठो अमलकशो उठो कि आफ़ताब सर पे आ गया 
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दिल धड़कने का सबब याद आया 
वो तेरी याद थी अब याद आया
 
आज मुश्किल था सम्भलना ऐ दोस्त 
तू मुसीबत में अजब याद आया 
दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से 
फिर तेरा वादा-ए-शब याद आया 
तेरा भूला हुआ पैमान-ए-वफ़ा 
मर रहेंगे अगर अब याद आया 
फिर कई लोग नज़र से गुज़रे 
फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया 
हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन 
जब वो रुख़सत हुए तब याद आया
बैठ कर साया-ए-गुल में "नासिर"
हम बहुत रोये वो जब याद आया
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दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और ये चोट भी नई है अभी
भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी
तू शरीक-ए-सुख़न नहीं है तो क्या
हम-सुख़न तेरी ख़ामोशी है अभी
याद के बे-निशाँ जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी
शहर की बेचिराग़ गलियों में
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी
सो गये लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी
तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर में रात जागती है अभी
वक़्त अच्छा भी आयेगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी
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नीयत-ए-शौक़ भर न जाये कहीं
तू भी दिल से उतर न जाये कहीं

आज देखा है तुझे देर के बाद
आज का दिन गुज़र न जाये कहीं

न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाये कहीं

आरज़ू है के तू यहाँ आये
और फिर उम्र भर न जाये कहीं

जी जलाता हूँ और ये सोचता हूँ
रायेगाँ ये हुनर न जाये कहीं

आओ कुछ देर रो ही लें "नासिर"
फिर ये दरिया उतर न जाये कहीं
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नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिये
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये

जिस धूप की दिल को ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई
इन जलती बुझती गलियों में अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये

वो शहर में था तो उस के लिये औरों से मिलना पड़ता था
अब ऐसे-वैसे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिये

अब शहर में इस का बादल ही नहीं कोई वैसा जान-ए-ग़ज़ल ही नहीं
ऐवान-ए-ग़ज़ल में लफ़्ज़ों के गुलदान सजाऊँ किस के लिये

मुद्दत से कोई आया न गया सुनसान पड़ी है घर की फ़ज़ा
इन ख़ाली कमरों में "नासिर" अब शम्मा जलाऊँ किस के लिये
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"नासिर" क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
दीवाना है दीवाने के मुँह न लगो तो बेहतर है

कल जो था वो आज नहीं जो आज है कल मिट जायेगा
रूखी-सूखी जो मिल जाये शुक्र करो तो बेहतर है

कल ये ताब-ओ-तवाँ न रहेगी ठंडा हो जायेगा लहू
नाम-ए-ख़ुदा हो जवाँ अभी कुछ कर गुज़रो तो बेहतर है

क्या जाने क्या रुत बदले हालात का कोई ठीक नहीं
अब के सफ़र में तुम भी हमारे साथ चलो तो बेहतर है

कपड़े बदल कर बाल बना कर कहाँ चले हो किस के लिये
रात बहुत काली है "नासिर" घर में रहो तो बेहतर है
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फिर सावन रुत की पवन चली तुम याद आये
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी तुम याद आये
फिर कुँजें बोलीं घास के हरे समन्दर में
रुत आई पीले फूलों की तुम याद आये
फिर कागा बोला घर के सूने आँगन में
फिर अम्रत रस की बूँद पड़ी तुम याद आये
पहले तो मैं चीख़ के रोया फिर हँसने लगा
बादल गरजा बिजली चमकी तुम याद आये
दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आये
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मुसलसल बेकली दिल को रही है
मगर जीने की सूरत तो रही है
मैं क्यूँ फिरता हूँ तन्हा मारा-मारा
ये बस्ती चैन से क्यों सो रही है
चल दिल से उम्मीदों के मुसाफ़िर
ये नगरी आज ख़ाली हो रही है
न समझो तुम इसे शोर-ए-बहाराँ
ख़िज़ाँ पत्तों में छुप के रो रही है
हमारे घर की दीवारों पे "नासिर"
उदासी बाल खोले सो रही है
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वो दिल नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं
मेरा इलाज मेरे चारागर के पास नहीं
तड़प रहे हैं ज़बाँ पर कई सवाल मगर
मेरे लिये कोई शयान-ए-इल्तमास नहीं 
तेरे उजालों में भी दिल काँप-काँप उठता है
मेरे मिज़ाज को आसूदगी भी रास नहीं 
कभी-कभी जो तेरे क़ुर्ब में गुज़ारे थे
अब उन दिनों का तसव्वुर भी मेरे पास नहीं 
गुज़र रहे हैं अजब मर्हलों से दीदा-ओ-दिल
सहर की आस तो है ज़िन्दगी की आस नहीं 
मुझे ये डर है तेरी आरज़ू न मिट जाये
बहुत दिनों से तबीयत मेरी उदास नहीं 
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वो साहिलों पे गाने वाले क्या हुए
वो कश्तियाँ जलाने वाले क्या हुए
वो सुबह आते-आते रह गई कहाँ
जो क़ाफ़िले थे आने वाले क्या हुए
मैं जिन की राह देखता हूँ रात भर
वो रौशनी दिखाने वाले क्या हुए
ये कौन लोग हैं मेरे इधर-उधर
वो दोस्ती निभाने वाले क्या हुए
इमारतें तो जल के राख हो गईं
इमारतें बनाने वाले क्या हुए
ये आप-हम तो बोझ हैं ज़मीन के
ज़मीं का बोझ उठाने वाले क्या हुए
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होती है तेरे नाम से वहशत कभी-कभी
बरहम  हुई है यूँ भी तबीयत कभी-कभी

ऐ दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब 
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी 

तेरे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-ए-आफ़रीन 
दिल बन गया है दोस्त की ख़िल्वत कभी-कभी 

दिल को कहाँ नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब 
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी 

जोश-ए-जुनूँ  में दर्द की तुग़यानियों] के साथ 
अश्कों में ढल गई तेरी सूरत कभी-कभी

तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन न था 
गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी-कभी 

कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था 
यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त कभी-कभी 

ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी-कभी



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