खुदी का नशा चढ़ा आप में रहा न गया।
ख़ुदा बने थे ‘यगाना’ मगर बना न गया॥
गुनाहे-ज़िंदादिली कहिये या दिल-आज़ारी[1]।
किसी पै हँस लिये इतना कि फिर हँसा न गया॥
समझते क्या थे, मगर सुनते थे तर्रानाये-दर्द।
समझ में आने लगा जब तो फिर सुना न गया॥
पुकारता रहा किस-किसको डूबनेवाला।
ख़ुदा थे इतने, मग्र कोई आड़े आ न गया॥
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