मेरी पसन्द की कविता
चूल्हे नहीं जलाये या बस्ती ही जल गईकुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ
आँखों के पोंछने से लगा आँच का पतायूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
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